Rhnn शिमला: सतलुज के किनारे बसे रामपुर में आयोजित होने वाले अंतरराष्ट्रीय लवी मेले में कई चीजों के व्यापार होता है। मेला खासकर ऊनी कपड़े, पीतल के बर्तन, औजार, बिस्तर, मेवे, शहद, सेब, न्योजा (चिलगोजा) सूखी खुमानी, अखरोट, ऊन और पशम के कारोबार के लिए प्रसिद्ध है. माना जाता है कि इस मेले का नाम पहाड़ों में पहने जाने वाले पारंपरिक कोट लोईया (ऊनी वस्त्र) से पड़ा था।
शिमला जिले की रामपुर रियासत में लवी मेला मध्य शताब्दी से चल रहा है। लेकिन विश्व स्तर पर लवी मेला उस वक्त प्रसिद्ध हुआ जब राजा केहर सिंह ने 1911 से कुछ वर्ष पूर्व तिब्बत सरकार के साथ व्यापार को लेकर संधि की। जिसके बाद रामपुर में तिब्बत और हिंदुस्तान के बीच व्यापार शुरू हुआ। उस समय की खास बात यह थी कि जो व्यापार मेले में होता था उसका कर नहीं लिया जाता था। यानी मेले का व्यापार करमुक्त होता था. जिसके कारण लवी मेले कि प्रसिद्धि और बढ़ती गई। हिमाचल के साथ-साथ विदेशी व्यापारी भी बड़ी संख्या में लवी मेले में पहुंचने लगे। जिसके बाद लवी मेले में किन्नौर, लाहौल-स्पीति, कुल्लू और प्रदेश के अन्य क्षेत्रों से व्यापारी पैदल पहुंचने लगे। और विदेशी व्यापारी तिब्बत, अफगानिस्तान और उज्वेकिस्तान से कारोबार करने के लिए रामपुर आते थे। वे विशेष रूप से ड्राई फ्रूट, ऊन, पशम और भेड़-बकरियों सहित घोड़ों को लेकर यहां आते थे। बदले में व्यापारी रामपुर से नमक, गुड़ और अन्य राशन लेकर लेकर जाते थे। यह नमक मंडी जिले के गुम्मा से लाया जाता था. लवी मेले में चामुर्थी घोड़ों का भी कारोबार किया जाता था. ये घोड़े उत्तराखंड से लाए जाते थे। लवी मेले में ऊन से बने उत्पादों की खरीद-फरोख्त भी होती थी. वर्तमान में मेले में किन्नौर के अलावा पंजाब, हरियाणा आदि राज्यों के व्यापारी ही कारोबार करने पहुंचते हैं।
1985 में मुख्यमंत्री बनने के बाद वीरभद्र सिंह ने इस मेले को अंतरराष्ट्रीय मेला घोषित कर दिया। जिसके बाद समय के साथ-साथ लवी मेले का स्वरूप भी बदल गया. पूर्व में ग्रामीण क्षेत्रों से पहुंचकर लोग वर्ष भर का सामान लवी से खरीदते थे, लेकिन अब जगह-जगह दुकानों की व्यवस्था होने से लवी मेले में होने वाले व्यापार पर भी असर देखने को मिल रहा है। मेले में व्यापार के साथ-साथ सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है। हर वर्ष 11 से 14 नवंबर तक होने वाले इस अंतरराष्ट्रीय लवी मेले में स्टार कलाकारों के साथ प्रदेश भर के विभिन्न क्षेत्रों की संस्कृति भी देखने को मिलती है। चार दिन तक चलने वाले इस सांस्कृतिक कार्यक्रमों में स्कूली बच्चों के कार्यक्रम भी आयोजित होते हैं। हर साल की तरह इस वर्ष भी मेला 11 से 14 नवंबर तक आयोजित होगा।