
15 सितंबर की डेडलाइन पर टिके रहने के संकेत, लेकिन मैदान में चुनौतियाँ बड़ी
घड़ी की सुइयाँ तेज चल रही हैं और टैक्सपेयर्स की नब्ज भी. आकलन वर्ष (AY) 2025-26 के लिए ITR दाख़िल करने की आख़िरी तारीख 15 सितंबर 2025 है. 14 सितंबर की शाम तक 6.29 करोड़ ITR फाइल हुए और करीब 3.8 करोड़ ई-वेरिफ़ाई हो पाए. लक्ष्य 8 करोड़ का है, ऐसे में दबाव साफ दिख रहा है. जुलाई 31 की मूल समय-सीमा पहले ही बढ़कर 15 सितंबर हुई थी—कारण थे ITR फ़ॉर्म में बड़े बदलाव, सिस्टम अपग्रेड और TDS क्रेडिट के देरी से रिफ्लेक्ट होना.
अब सवाल वही—क्या तारीख फिर बढ़ेगी? अंदरूनी संकेत बताते हैं कि संभावना कम है. सरकार फिलहाल 15 सितंबर पर अडिग दिख रही है. दूसरी तरफ़, टैक्स प्रोफेशनल्स और Association of Tax Bar of Advocates (ATBA) ने नॉन-ऑडिट ITR की डेडलाइन 15 अक्टूबर तक बढ़ाने और टैक्स ऑडिट रिपोर्ट की समय-सीमा आगे खिसकाने की मांग की है. तर्क यह है कि पोर्टल पर तकनीकी गड़बड़ियाँ बार-बार आ रही हैं, AIS और 26AS जैसे अहम दस्तावेज़ कई बार खुल नहीं रहे, और पीक समय में लॉग-इन/सबमिशन में दिक्कतें बढ़ जाती हैं.
टाइमलाइन स्पष्ट है: जिन व्यक्तियों, HUFs और अन्य गैर-ऑडिट मामलों पर ऑडिट अनिवार्य नहीं है, उनके लिए 15 सितंबर डेडलाइन है. ऑडिट वाले बिज़नेस के लिए 31 अक्टूबर और ट्रांसफर प्राइसिंग से जुड़े मामलों के लिए 30 नवंबर की समय-सीमा तय है. 15 सितंबर चूकने पर लेट फीस धारा 234F के तहत अधिकतम 5,000 रुपये तक लग सकती है (कुल आय 5 लाख तक होने पर 1,000 रुपये). इसके अलावा धारा 234A के तहत ब्याज का मीटर अलग चलता है, और एडवांस टैक्स में कमी पर 234B/234C भी लागू हो सकता है.
पोर्टल फ्रंट पर असल दिक्कतें कहाँ हैं? पीक लोड में साइट पर लॉग-इन और वैलिडेशन स्लो हो जाता है. AIS/26AS में डेटा मिसमैच—जैसे कुछ बैंक इंटरेस्ट का गायब होना, डुप्लिकेट एंट्री या TDS क्रेडिट देर से दिखना—ITR को अंतिम रूप देने में देरी कर देता है. ऐसे में आयकर विभाग बार-बार सलाह दे रहा है कि आख़िरी दिन का इंतज़ार न करें. मगर जमीनी हक़ीक़त यह है कि बड़ी संख्या में लोग Form 16, AIS और 26AS को मिलान करने में ही फँसे हुए हैं.
अगर तारीख नहीं बढ़ी तो आपकी रणनीति क्या होनी चाहिए
डेडलाइन बढ़े या न बढ़े, सबसे व्यावहारिक रास्ता यह है: डेटा को जितना हो सके सटीक कर लें, और समय रहते रिटर्न फाइल कर दें. इससे रिफंड जल्दी प्रोसेस होता है और नोटिस का रिस्क कम रहता है.
- AIS और 26AS मिलान: बैंक इंटरेस्ट, डिविडेंड, TDS/TCS, SFT एंट्री (जैसे हाई-वैल्यू खर्च/इन्वेस्टमेंट) सब मिलाएँ. मिसमैच दिखे तो AIS में फ़ीडबैक दर्ज करें और अपने रिकॉर्ड (पासबुक/इंटरेस्ट सर्टिफिकेट/ब्रोकरेज स्टेटमेंट) से सपोर्ट बनाकर रखें.
- Form 16 की भूमिका: सैलरीड टैक्सपेयर्स के लिए Form 16 और 26AS का मिलान बुनियादी स्टेप है. अगर TDS क्रेडिट देरी से दिख रहा है, फिर भी वेतन, अन्य आय और कटौतियों का सही ब्योरा भरना ज़रूरी है.
- सही ITR फ़ॉर्म चुनें: केवल सैलरी/एक घर और सीमित ब्याज आय पर ITR-1, बिज़नेस/प्रोफेशन या कैपिटल गेन हो तो ITR-2/3, प्रिज़म्पटिव इनकम पर ITR-4—गलत फ़ॉर्म से प्रोसेसिंग अटकती है.
- ब्याज और लेट फीस को समझें: धारा 234A का ब्याज प्रति माह 1% की दर से बकाया टैक्स पर लगता है. 234B/234C तब लगते हैं जब एडवांस टैक्स में कमी रहती है. धारा 234F के तहत लेट फीस 1,000/5,000 रुपये तक—यह आय के स्तर पर निर्भर है.
- लॉस कैरी-फॉरवर्ड का नियम: देरी से ITR भरने पर बिज़नेस और कैपिटल गेन की अधिकांश हानियाँ आगे नहीं ले जा पाएँगे. समय पर फाइलिंग नुकसान के सेट-ऑफ और कैरी-फॉरवर्ड के लिए अहम है.
- ई-वेरिफ़िकेशन न भूलें: ITR तभी माना जाएगा जब आप 30 दिनों में ई-वेरिफ़ाई कर दें. देरी पर रिटर्न ‘अमान्य’ माना जा सकता है.
अगर आप 15 सितंबर से चूक गए तो क्या? आप 31 दिसंबर 2025 तक ‘बिलेटेड रिटर्न’ फाइल कर सकते हैं. इसी तारीख तक संशोधित (रिवाइज़्ड) रिटर्न का भी विकल्प रहता है—गलती दिखे तो सुधार लें. उसके बाद आख़िरी विकल्प है धारा 139(8A) के तहत ‘अपडेटेड रिटर्न’, जो 24 महीनों तक संभव रहता है, पर उस पर अतिरिक्त टैक्स और ब्याज का बोझ ज़्यादा होता है.
नए टैक्स रेजीम बनाम पुराने रेजीम की बात करें तो नए रेजीम में कम स्लैब-रेट्स के साथ सीमित छूटें मिलती हैं, जबकि पुराने रेजीम में धारा 80C, 80D जैसी कटौतियाँ व्यापक हैं. सैलरीड टैक्सपेयर्स के लिए स्टैंडर्ड डिडक्शन उपलब्ध है. सही रेजीम का चुनाव आपके वास्तविक डेटा पर निर्भर है—किस रेजीम में कुल टैक्स देनदारी कम बनती है, वही चुनें. रेजीम स्विच करते समय फॉर्म में सही विकल्प टिक करना न भूलें.
टेक्निकल गड़बड़ी की स्थिति में क्या करें? लॉग-इन फेल होने पर अलग ब्राउज़र/इन्कॉग्निटो आज़माएँ, कैश-कुकीज़ क्लियर करें, और ऑफ-पीक घंटों (सुबह जल्दी/रात देर) में सबमिशन करें. AIS/26AS एक्सेस न हो तो थोड़ी देर बाद पुनः कोशिश करें. अगर सिस्टम एरर लगातार आए, स्क्रीनशॉट लेकर हेल्पडेस्क पर शिकायत दर्ज करें—कम से कम आप यह दिखा पाएँगे कि समय-सीमा के भीतर आपने प्रयास किए.
ऑडिट और ट्रांसफर प्राइसिंग वाले मामलों में चेकलिस्ट अलग है: टैक्स ऑडिट रिपोर्ट (फॉर्म 3CA/3CB-3CD) 31 अक्टूबर तक, ट्रांसफर प्राइसिंग डॉक्युमेंटेशन और फॉर्म 3CEB 30 नवंबर तक—ये डेट्स फिलहाल यथावत हैं. जिन पर ऑडिट लागू है, वे एडवांस टैक्स और TDS/TCS रीकंसिलियेशन अभी से फ्रीज़ करें ताकि आख़िरी हफ्तों में भीड़ न बने.
रिफंड की चिंता कर रहे हैं? समय पर और त्रुटिरहित रिटर्न आम तौर पर जल्दी प्रोसेस होते हैं. बैंक अकाउंट प्री-वेरिफ़िकेशन और नाम-PAN-बैंक KYC मैचिंग चेक कर लें. AIS में बड़ी-बड़ी SFT एंट्रीज़ (जैसे म्यूचुअल फंड में भारी निवेश, कार्ड खर्च, महंगी ज्वेलरी की खरीद) दिख रही हों तो उनके सोर्स का रिकॉर्ड साथ रखें—यही बाद में पूछताछ से बचाता है.
तस्वीर साफ है: फील्ड में दिक्कतें असली हैं—पोर्टल पर लोड, AIS/26AS एक्सेस, और फ़ॉर्म बदलावों की सीखने की कर्व. लेकिन नीति-स्तर पर इस वक्त अतिरिक्त बढ़ोतरी की संभावना कमजोर मानी जा रही है. ऐसे में जोखिम उठाने के बजाय काम पूरा कर देना बेहतर है. समय पर फाइलिंग से लेट फीस और ब्याज का खर्च बचता है, रिफंड तेज मिलता है और कंप्लायंस स्कोर सुधरता है. अगर आख़िरी घंटे में तकनीकी रुकावट आ जाए, तो प्रमाण (लॉग/स्क्रीनशॉट) संभाल कर रखें और पहली विंडो मिलते ही फाइल कर दें. और हाँ, ITR deadline extension 2025 की अटकलों पर नहीं, अपने डेटा-रेडीनेस पर भरोसा रखें—यही सबसे सुरक्षित रणनीति है.